...once upon a time

...once upon a time

sawan barsa karta tha,

gulshan mehka karta tha,
aangan mein chhyi-chhap kar-ke,
bachpan chehka karta tha.

Monday 15 November, 2010

दो चुटकी ताज़ा हवा

आज दो चुटकी ताज़ा हवा चली है.
कुछ मील दूर वाले,
कोहसार की जेब से निकला हुआ,
सर्दी का तोहफा सा लगने वाली ये हवा,
ज़र्द पड़ रहे पत्तों के गालों पर जैसे नमी कि मालिश कर रही है,
मेरे दरवाजे पर पल रहे, नौजवां अमरुद के पेड़ के फलों में भी शायद अबके सर्दी,
यह छुअन, पकेगी मिठास बनकर.
इसी अहसास को छूने एक जिद्दी ठूंठ कि भी बाजु हिली है..
कि आज,
"दो चुटकी ताज़ा हवा चली है."
-विजय 'समीर'

Sunday 22 August, 2010

अब बनेगी प्लास्टिक से सस्ती सोलर बिजली

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read as published in दैनिक भास्कर

विजय खंडेलवाल |
जयपुर. सौर ऊर्जा के लिए सिलिकॉन की बनी महंगी विदेशी सोलर सेल की जगह स्वदेशी प्लास्टिक सेल्स का उपयोग सम्भव हो पाएगा। बनेगी

prof. y.k. vijay and s.s. sharma
यह सेल सिलिकॉन की तुलना में छह गुना सस्ती भी होगी। इससे सस्ती सौर ऊर्जा का उत्पादन सम्भव हो सकेगा। फिलहाल सिलिकॉन सेल से बनने वाली एक वाट बिजली की लागत 300 रुपए आती है जो पॉलिमर सेल से केवल 50 रुपए तक आएगी। पॉलिमर एक तरह का सामान्य :लास्टिक ही है। इसी कड़ी में राजस्थान यूनिवर्सिटी के स्कॉलर श्याम सुंदर शर्मा ने यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर डवलपमेंट ऑफ फिजिक्स एजुकेशन (सीडीपीई) के डायरेक्टर प्रो. वाई.के. विजय के सहयोग से 80 नैनोमीटर मोटाई तक की पॉलिमर सोलर सेल का निर्माण किया है।


इसकी एफिशियंसी 4 प्रतिशत तक रिकॉर्ड की गई है। दुनिया भर में पॉलिमर सेल्स की एफिशियंसी बढ़ाने पर काम चल रहा है। इस रिसर्च को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है और हाल ही जर्मनी की एक संस्था वीडीएम वर्लेग ने इसे एक किताब के रूप में प्रकाशित किया है। इस किताब को यूनिवर्सिटी के नए कोर्स: एमटैक इंजीनियरिंग फिजिक्स में भी शामिल कर लिया गया है। शर्मा फिलहाल अजमेर स्थित राजकीय महिला अभियांत्रिकी महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं।

जल्द बढ़ेगी एफिशियंसी:
सौर ऊर्जा के लिए फिलहाल जो सिलिकॉन की सेल काम में ली जाती है, उसकी एफिशियंसी 10 प्रतिशत है, जबकि पॉलिमर सेल की एफिशियंसी अभी 4 प्रतिशत के आसपास ही है। प्रो. वाई.के. विजय कहते हैं कि जल्द ही रिसर्च के कारण इस सेल की क्षमता बढ़ेगी। सिलिकॉन सेल से बिजली का व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने में 80 वर्ष लग गए थे, मगर पॉलिमर सेल से बिजली का उत्पादन 2013-14 तक शुरू हो जाएगा। जानकार बताते हैं कि :लास्टिक सेल से सौर ऊर्जा के उत्पादन की लागत छह गुना कम आएगी क्योंकि इनका निर्माण सामान्य तापमान पर सम्भव है। मतलब 24 वाट की एक लाइट 7200 रुपए की जगह केवल 1200 रुपए में बनाई जा सकेगी।

Wednesday 4 August, 2010

जहाँ पढ़े, वहीँ पढ़ाने योग्य नहीं

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 विजय खंडेलवाल
जयपुर. राजस्थान यूनिवर्सिटी से बायोटैक्नोलॉजी की मास्टर्स डिग्री लेने वाले स्टूडेंट्स को लैक्चरर बनने के योग्य नहीं माना जा रहा है। वहीं राजस्थान की यूनिवर्सिटीज में अलग डिपार्टमेंट नहीं होने से फिलहाल नई भर्तियों में इनके असिस्टैंट प्रोफेसर बनने की सम्भावना भी नहीं है।


इससे राजस्थान यूनिवर्सिटी से एमएससी (बायोटैक्नोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और बायोकैमिस्ट्री) करने वाले हजारों स्टूडेंट्स अभी नई भर्तियों के लिए आवेदन करने की स्थिति में नहीं। वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी और पूना यूनिवर्सिटी जैसी देश की कई बड़ी यूनिवर्सिटीज में बायोटैक्नोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी से एमएससी करने वाले स्टूडेंट्स को बॉटनी में आवेदन करने के योग्य माना जा रहा है। राजस्थान यूनिवर्सिटी के बायोटैक्नोलॉजी का पीजी कोर्स बॉटनी और माइक्रोबायोलॉजी का पीजी कोर्स जूलोजी डिपार्टमेंट में चलाया जा रहा है।

इन डिपार्टमेंट्स के पूर्व और वर्तमान एचओडी भी इस बात के पक्ष में हैं कि ये स्टूडेंट्स संबंधित डिपार्टमेंट के लिए पूरी तरह योग्य हैं। इन सब्जैक्ट एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोर्स का नाम भले ही अलग हो, लेकिन इनके सिलेबस का अधिकांश हिस्सा समान है। बॉटनी डिपार्टमेंट की पूर्व एचओडी प्रो. अमला बत्रा कहती हैं कि जब बॉटनी वाले बायोटैक पढ़ा सकते हैं तो बायोटैक वाले बॉटनी क्यों नहीं। यूनिवर्सिटी के इन डिपार्टमेंट्स की ओर से इस संबंध में वाइस चांसलर को भी अवगत कराया जा चुका है।

फिलहाल सारा मामला एकेडमिक काउंसिल के पाले में है। बायोटैक्नोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और बायोकैमिस्ट्री के 110 से भी ज्यादा स्टूडेंट्स का दल हाल ही वाइस चांसलर से मिला। बॉटनी डिपार्टमेंट से एमएससी करने वाले इस दल के एक छात्र सुरेश स्वामी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वीसी ने मुद्दे पर एकेडमिक काउंसिल में चर्चा करने का आश्वासन दिया है। यह दल मुख्यमंत्री को भी इस समस्या से अवगत करा चुका है।

यूजीसी ने भी माना समान

यू निवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) भी बायोटैक्नोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी को लाइफ साइंस मानते हुए नेशनल एलिजिबिलिटी टैस्ट (नेट) के सर्टिफिकेट में इनके छात्रों को बॉटनी और जूलोजी के लिए योग्य मानती है। राजस्थान यूनिवर्सिटी के ही लाइफ साइंस के डीन प्रो.एस.एल. कोठारी कहते हैं कि यूनिवर्सिटी को यूजीसी के इस नियम को अडॉप्ट करते हुए इन विषयों के छात्रों को बॉटनी और जूलोजी में आवेदन के लिए योग्य मानना चाहिए।

अलग डिपार्टमेंट की कमी

अभी इंटरडिसिप्लिनरी जमाना है, जब यूजीसी बायोटैक छात्रों को जूलोजी के लिए योग्य मान रही है तो यूनिवर्सिटी को भी यह नियम अपनाना चाहिए। कम से कम जब तक बायोटैक्नोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी के अलग डिपार्टमेंट नहीं बन जाते तब तक इन स्टूडेंट्स को बॉटनी और जूलोजी डिपार्टमेंट के लिए योग्य माना जाना चाहिए। - प्रो. एस.एल. कोठारी, डीन, फैकल्टी ऑफ साइंस, आरयू

बॉटनी-जूलॉजी से मिल रहा है सिलेबस

बायोटैक और माइक्रोबायोलॉजी कोर्स भले ही अलग हों, लेकिन इनके सिलेबस का अधिकांश हिस्सा बॉटनी और जूलोजी से मिलता है। स्टूडेंट्स और सब्जैक्ट्स के हित में यही है कि जो जिस डिपार्टमेंट से पढ़ रहा है उसे वहां पढ़ाने के योग्य तो माना ही जाना चाहिए। - प्रो. अमला बत्रा, पूर्व एचओडी, बॉटनी डिपार्टमेंट, राजस्थान यूनिवर्सिटी

आप उन्हीं से पूछिए

कुछ स्टूडेंट्स मांग लेकर आए थे। मैंने उन्हें बता दिया है कि क्या होगा। आप उन्हीं से पूछिए। - प्रो. ए.डी. सावंत, वाइस चांसलर, राजस्थान यूनिवर्सिटी

Hire in 8th semester, NASSCOM suggests companies and colleges

http://www.bhaskar.com/article/RAJ-OTH-placement-in-the-eighth-semester-1219975.html

विजय खंडेलवाल | जयपुर 
इस वर्ष भी नास्कॉम (नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज) ने आईटी और सॉफ्टवेयर कम्पनियों को सुझाव दिया है कि वह इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट्स में केवल आठवें सेमेस्टर में ही प्लेसमेंट करें। ऐसा ही ईमेल इन्हीं दिनों आरटीयू से सम्बद्ध इंस्टीट्यूट्स को भी मिला है। नास्कॉम का कहना है कि प्लेसमेंट आठवें सेमेस्टर में होंगे तो स्टूडेंट्स अंत तक अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे पाएंगे। वहीं कम्पनियां अपने प्रोजेक्ट्स को ध्यान में रखकर उसके अनुसार सही रिक्रूटमेंट कर पाएंगी।

पिछले वर्ष भी कम्पनियों और इंस्टीट्यूट्स को यह सुझाव दिया गया था। लगभग सभी इंस्टीट्यूट्स ने इस सुझाव पर काफी हद तक अमल भी किया था, मगर इस बार इस पर इंजीनियरिंग एजुकेशन से जुड़े लोगों की मिलीजुली प्रतिक्रिया है। कई कॉलेजों से यह जानकारी मिली है कि कम्पनियां आठवें सेमेस्टर में तो नहीं, लेकिन सातवें सेमेस्टर के अंत तक ही प्लेसमेंट करना चाहती हैं।

पिछले वर्ष जरूरी था सुझाव

इंस्टीट्यूट्स संचालकों का कहना है कि पिछले वर्ष तक यह सुझाव काफी मायने रखता था। जेईसीआरसी फाउंडेशन के डायरेक्टर अर्पित अग्रवाल का कहना है कि पिछले वर्ष रिसेशन का प्रभाव था। प्लेसमेंट में गैप बन रहा था इसलिए आठवें सेमेस्टर में प्लेसमेंट होने से यह गैप पूरा हो सका। वहीं स्टूडेंट्स की डिग्री के दौरान उसकी क्वालिटी को बनाए रखने के लिए भी यह जरूरी है। इस बार रिक्रूटमेंट का सिनेरियो अच्छा है। इसी कारण सैशन की शुरुआत में ही कम्पनियों ने कैम्पस पहुंचना शुरू कर दिया है। ऐसी स्थिति में कॉलेज कम्पनियों को लौटा भी नहीं सकते, क्योंकि इससे स्टूडेंट्स को अच्छी कम्पनियों में जगह मिल रही है।

कम्पनियां कर सकेंगी सही परख

आरटीयू के इंस्टीट्यूट्स के लिए यह सुझाव व्यावहारिक भी है, क्योंकि हर सेमेस्टर का रिजल्ट अभी तक देरी से ही आता है। पूर्णिमा इंजीनियरिंग कॉलेज की प्लेसमेंट ऑफिसर मीनू सक्सेना कहती हैं, ऐसे में जितनी देरी से प्लेसमेंट होंगे स्टूडेंट्स के उतने ही ज्यादा सेमेस्टर के रिजल्ट कम्पनियों के सामने होंगे। इस तरह कम्पनियां स्टूडेंट्स की सही परख कर पाएंगी। वह कहती हैं कि इस बार भी नास्कॉम के सुझावों को फॉलो किया जाएगा। इससे स्टूडेंट्स अंतिम सेमेस्टर तक अपनी पढ़ाई के प्रति अवेयर भी रहेंगे। जहां इंस्टीट्यूट नास्कॉम के सुझावों को मानना चाहते हैं, वहीं कम्पनियां खुद इंस्टीट्यूट्स में सातवें सेमेस्टर में ही आने की मंशा बना चुकी हैं, क्योंकि वे चाहती हैं कि हर इंस्टीट्यूट के बैस्ट स्टूडेंट्स वह रिक्रूट करें। कुछ बड़ी कम्पनियां अगस्त में भी शहर में कैम्पस रिक्रूटमेंट करेंगी।

कॉम्पिटीशन पर फोकस

सातवें सेमेस्टर में कैम्पस सलेक्शन आयोजित करने से एक परेशानी यह भी थी कि यह दिसंबर के आसपास होता है। इसी दौरान कॉमन एडमिशन टेस्ट और फरवरी में ग्रेजुएट एप्टीट्यूट टेस्ट इन इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट्स में होते हैं। इससे स्टूडेंट्स प्रेशर में आ जाते हैं। आठवें सेमेस्टर की शुरुआत में कैम्पस सलेक्शन होने से स्टूडेंट्स पर यह दबाव नहीं रहेगा।

Tuesday 27 July, 2010

MY NEWS @ Dainik Bhaskar

International delegation in Jaipur

Foreign delegation at JECRC foundation campus
 जयपुर। भारत में इंग्लिश लैंग्वेज और बिजनेस कम्यूनिकेशन स्किल्स की पिछले 6 सप्ताह से ट्रेनिंग ले रहे विभिन्न देशों के प्रोफेशनल्स का दल सोमवार को जयपुर पहुंचा। सीतापुरा स्थित जयपुर इंजीनियरिंग कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर (जेईसीआरसी) पहुंचे इस दल में ईराक, ताजिकिस्तान, फिलीस्तीन, उज्बेकिस्तान, अफगानिस्तान, मंगोलिया, ईरान और वियतनाम जैसे देशों के कुल 14 डेलीगेट्स शामिल थे।
अहमदाबाद में एंटरप्रेन्यॉरशिप डवलपमेंट इंस्टट्यूट ऑफ इंडिया (ईडीआई) की ओर से चलाए जा रहे 6 सप्ताह के ट्रेनिंग प्रोग्राम के स्टडी टूर के तहत यह दल जयपुर आया। इस दल में कई देशों के विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारी, इंडस्ट्रियल इंस्टीट्यूशंस के प्रतिनिधि और विभिन्न एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस के टीचर हैं। इंडियन टैक्निकल एंड इकोनॉमिक कॉ-आपरेशन (आईटीईसी) के सहयोग से चलाए जा रहे इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के पहले चरण में अहमदाबाद स्थित ईडीआई में सभी डेलीगेट्स को 'यूज ऑफ इंग्लिश लैंग्वेज इन बिजनेस कम्यूनिकेशन विषय पर ट्रेनिंग दी गई है।
दल के साथ इंट्रैक्शन के लिए एक विशेष सैशन भी रखा गया। इसमें इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर अर्पित अग्रवाल की अध्यक्षता में 'हायर टैक्निकल एजुकेशन: सिस्टम एंड प्रोसेसÓ विषय पर दल के साथ चर्चा की गई। एक दूसरे सैशन में इंस्टीट्यूट के ही प्रो. एम.एस. पिल्लई ने दल के सदस्यों को ऑर्गनाइजेशनल कम्युनिकेशन के बारे में बताया।

MY NEWS @ Dainik Bhaskar



Mehul wins silver medal in international physics olympiad



Mehul Kumar (Jaipur)

जयपुर. इंटरनेशनल फिजिक्स ओलम्पियाड 2010 में इस वर्ष जयपुर के मेहुल कुमार ने सिल्वर मैडल हासिल कर एक बार फिर शहर का नाम रोशन किया गया है। 17 से 25 जुलाई तक क्रोशिया में चले 41वें इंटरनेशनल फिजिक्स ओलम्पियाड में हिस्सा लेने भारत से पांच स्टूडेंट्स गए थे।

इन स्टूडेंट्स को तीन-स्तरीय सलेक्शन प्रोसेस के जरिए इंटरनेशनल ओलम्पियाड के लिए चुना गया था। इनमें से मेहुल जयपुर के अकेले स्टूडेंट थे। मेहुल सहित तीन स्टूडेंट्स ने सिल्वर, मुंबई की आकांक्षा शारदा ने गोल्ड और जोधपुर के संचार शर्मा ने ब्रोंज मैडल हासिल किया। इससे पहले भी मेहुल कई नेशनल और इंटरनेशनल लेवल के कॉम्पिटीशंस में टॉप रैंक हासिल कर चुके हैं।

हाल ही उन्होंने आईआईटी जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम में भी देशभर में 19वीं रैंक हासिल की थी। अमित इंटरनेशनल कैमिस्ट्री ओलम्पियाड में दूसरी ओर जयपुर के ही अमित पांघल 19 जुलाई से जापान में शुरू हुए इंटरनेशनल कैमिस्ट्री ओलम्पियाड में अपना टैलेंट दिखा रहे हैं। कैमिस्ट्री ओलम्पियाड 28 जुलाई तक होगा।