आज दो चुटकी ताज़ा हवा चली है.
कुछ मील दूर वाले,
कोहसार की जेब से निकला हुआ,
सर्दी का तोहफा सा लगने वाली ये हवा,
ज़र्द पड़ रहे पत्तों के गालों पर जैसे नमी कि मालिश कर रही है,
मेरे दरवाजे पर पल रहे, नौजवां अमरुद के पेड़ के फलों में भी शायद अबके सर्दी,
यह छुअन, पकेगी मिठास बनकर.
इसी अहसास को छूने एक जिद्दी ठूंठ कि भी बाजु हिली है..
कि आज,
"दो चुटकी ताज़ा हवा चली है."
-विजय 'समीर'
कुछ मील दूर वाले,
कोहसार की जेब से निकला हुआ,
सर्दी का तोहफा सा लगने वाली ये हवा,
ज़र्द पड़ रहे पत्तों के गालों पर जैसे नमी कि मालिश कर रही है,
मेरे दरवाजे पर पल रहे, नौजवां अमरुद के पेड़ के फलों में भी शायद अबके सर्दी,
यह छुअन, पकेगी मिठास बनकर.
इसी अहसास को छूने एक जिद्दी ठूंठ कि भी बाजु हिली है..
कि आज,
"दो चुटकी ताज़ा हवा चली है."
-विजय 'समीर'
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