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विजय खंडेलवाल |
जयपुर. सौर ऊर्जा के लिए सिलिकॉन की बनी महंगी विदेशी सोलर सेल की जगह स्वदेशी प्लास्टिक सेल्स का उपयोग सम्भव हो पाएगा। बनेगी
prof. y.k. vijay and s.s. sharma |
इसकी एफिशियंसी 4 प्रतिशत तक रिकॉर्ड की गई है। दुनिया भर में पॉलिमर सेल्स की एफिशियंसी बढ़ाने पर काम चल रहा है। इस रिसर्च को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है और हाल ही जर्मनी की एक संस्था वीडीएम वर्लेग ने इसे एक किताब के रूप में प्रकाशित किया है। इस किताब को यूनिवर्सिटी के नए कोर्स: एमटैक इंजीनियरिंग फिजिक्स में भी शामिल कर लिया गया है। शर्मा फिलहाल अजमेर स्थित राजकीय महिला अभियांत्रिकी महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं।
जल्द बढ़ेगी एफिशियंसी:
सौर ऊर्जा के लिए फिलहाल जो सिलिकॉन की सेल काम में ली जाती है, उसकी एफिशियंसी 10 प्रतिशत है, जबकि पॉलिमर सेल की एफिशियंसी अभी 4 प्रतिशत के आसपास ही है। प्रो. वाई.के. विजय कहते हैं कि जल्द ही रिसर्च के कारण इस सेल की क्षमता बढ़ेगी। सिलिकॉन सेल से बिजली का व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने में 80 वर्ष लग गए थे, मगर पॉलिमर सेल से बिजली का उत्पादन 2013-14 तक शुरू हो जाएगा। जानकार बताते हैं कि :लास्टिक सेल से सौर ऊर्जा के उत्पादन की लागत छह गुना कम आएगी क्योंकि इनका निर्माण सामान्य तापमान पर सम्भव है। मतलब 24 वाट की एक लाइट 7200 रुपए की जगह केवल 1200 रुपए में बनाई जा सकेगी।
1 comment:
great yar tum blogger ho gaye.keep it up
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