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विजय खंडेलवाल
जयपुर. राजस्थान यूनिवर्सिटी से बायोटैक्नोलॉजी की मास्टर्स डिग्री लेने वाले स्टूडेंट्स को लैक्चरर बनने के योग्य नहीं माना जा रहा है। वहीं राजस्थान की यूनिवर्सिटीज में अलग डिपार्टमेंट नहीं होने से फिलहाल नई भर्तियों में इनके असिस्टैंट प्रोफेसर बनने की सम्भावना भी नहीं है।
इससे राजस्थान यूनिवर्सिटी से एमएससी (बायोटैक्नोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और बायोकैमिस्ट्री) करने वाले हजारों स्टूडेंट्स अभी नई भर्तियों के लिए आवेदन करने की स्थिति में नहीं। वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी और पूना यूनिवर्सिटी जैसी देश की कई बड़ी यूनिवर्सिटीज में बायोटैक्नोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी से एमएससी करने वाले स्टूडेंट्स को बॉटनी में आवेदन करने के योग्य माना जा रहा है। राजस्थान यूनिवर्सिटी के बायोटैक्नोलॉजी का पीजी कोर्स बॉटनी और माइक्रोबायोलॉजी का पीजी कोर्स जूलोजी डिपार्टमेंट में चलाया जा रहा है।
इन डिपार्टमेंट्स के पूर्व और वर्तमान एचओडी भी इस बात के पक्ष में हैं कि ये स्टूडेंट्स संबंधित डिपार्टमेंट के लिए पूरी तरह योग्य हैं। इन सब्जैक्ट एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोर्स का नाम भले ही अलग हो, लेकिन इनके सिलेबस का अधिकांश हिस्सा समान है। बॉटनी डिपार्टमेंट की पूर्व एचओडी प्रो. अमला बत्रा कहती हैं कि जब बॉटनी वाले बायोटैक पढ़ा सकते हैं तो बायोटैक वाले बॉटनी क्यों नहीं। यूनिवर्सिटी के इन डिपार्टमेंट्स की ओर से इस संबंध में वाइस चांसलर को भी अवगत कराया जा चुका है।
फिलहाल सारा मामला एकेडमिक काउंसिल के पाले में है। बायोटैक्नोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और बायोकैमिस्ट्री के 110 से भी ज्यादा स्टूडेंट्स का दल हाल ही वाइस चांसलर से मिला। बॉटनी डिपार्टमेंट से एमएससी करने वाले इस दल के एक छात्र सुरेश स्वामी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वीसी ने मुद्दे पर एकेडमिक काउंसिल में चर्चा करने का आश्वासन दिया है। यह दल मुख्यमंत्री को भी इस समस्या से अवगत करा चुका है।
यूजीसी ने भी माना समान
यू निवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) भी बायोटैक्नोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी को लाइफ साइंस मानते हुए नेशनल एलिजिबिलिटी टैस्ट (नेट) के सर्टिफिकेट में इनके छात्रों को बॉटनी और जूलोजी के लिए योग्य मानती है। राजस्थान यूनिवर्सिटी के ही लाइफ साइंस के डीन प्रो.एस.एल. कोठारी कहते हैं कि यूनिवर्सिटी को यूजीसी के इस नियम को अडॉप्ट करते हुए इन विषयों के छात्रों को बॉटनी और जूलोजी में आवेदन के लिए योग्य मानना चाहिए।
अलग डिपार्टमेंट की कमी
अभी इंटरडिसिप्लिनरी जमाना है, जब यूजीसी बायोटैक छात्रों को जूलोजी के लिए योग्य मान रही है तो यूनिवर्सिटी को भी यह नियम अपनाना चाहिए। कम से कम जब तक बायोटैक्नोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी के अलग डिपार्टमेंट नहीं बन जाते तब तक इन स्टूडेंट्स को बॉटनी और जूलोजी डिपार्टमेंट के लिए योग्य माना जाना चाहिए। - प्रो. एस.एल. कोठारी, डीन, फैकल्टी ऑफ साइंस, आरयू
बॉटनी-जूलॉजी से मिल रहा है सिलेबस
बायोटैक और माइक्रोबायोलॉजी कोर्स भले ही अलग हों, लेकिन इनके सिलेबस का अधिकांश हिस्सा बॉटनी और जूलोजी से मिलता है। स्टूडेंट्स और सब्जैक्ट्स के हित में यही है कि जो जिस डिपार्टमेंट से पढ़ रहा है उसे वहां पढ़ाने के योग्य तो माना ही जाना चाहिए। - प्रो. अमला बत्रा, पूर्व एचओडी, बॉटनी डिपार्टमेंट, राजस्थान यूनिवर्सिटी
आप उन्हीं से पूछिए
कुछ स्टूडेंट्स मांग लेकर आए थे। मैंने उन्हें बता दिया है कि क्या होगा। आप उन्हीं से पूछिए। - प्रो. ए.डी. सावंत, वाइस चांसलर, राजस्थान यूनिवर्सिटी
3 comments:
सही बात है यह समस्या तो है ही. और देखते हैं कि कब यह समस्या दूर होती है.
नाइन्सफ़ी के खिलाफ लोखोगे नहीं तो कोई पढ़ेगा जैसे? बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?
शुभकामनाएं!
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तलाश जिन्दा लोगों की ! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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