...once upon a time

...once upon a time

sawan barsa karta tha,

gulshan mehka karta tha,
aangan mein chhyi-chhap kar-ke,
bachpan chehka karta tha.

Tuesday, 22 February 2011

सर्द रात की बूंदे

ख़ामोशी ने भिगोया ऐसी आवाज बनकर,
सर्द रात में सन्नाटे का साज बनकर,
अर्ज़ किया आसमां से गुनगुनाने को तो,
बूंदे गिरी बादल के अल्फाज़ बनकर |
~विजय "समीर"

आवारा दस्तक

अब दस्तक, आवारा हो गई है,
दरवाजे नहीं मिलते, सो बेसहारा हो गई है.
सूरज तो पहले भी घर के पीछे ही उगता था,
मगर छिपते-छिपते शाम को दरवाजे से
उस सुराख़ से रोशनी चौक में टहल जाया करती थी,
जहाँ से सालों पहले एक कील निकल गई थी.
सूरज अब भी घर के पीछे ही निकलता है,
मगर अब, शाम की चाय पर रोशनी की कमी खलती है,
जानते हो, ठीक सामने वाले खाली प्लॉट जैसे पार्क में,
कभी जहां बच्चे खेला करते थे,
हर आधे घंटे में मम्मियों की 'अब घर आजा बेटा' जैसी आवाजों पर,
'दो मिनट में आया मम्मी' कह दिया करते थे,
उस जगह किसी डवलपर ने घरों की कोई बड़ी इमारत बना दी है,
सूरज तो हर शाम उसके भी दरवाजे पर आता होगा, आता ही होगा,
मगर जानते हो, अब रोशनी दीवारों पर लगे शीशों को देख कर लौट जाती है,
नए घरों में अब, दरवाजे नहीं मिलते,
सो बेसहारा हो गई है,
अब दस्तक आवारा हो गई है.
-विजय 'समीर'